कविता
तुम सदैव मुस्कराती रहो
तेरी आँखों मे झांक कर
बहुत देख लिया
अब अपने भीत्तर
झांकना चाहता हूं
शायद मेरा परवरदिगार
नज़र आ जाये मुझे
तेरे बगैर जीने का सलीका
पा जाऊं में
धुंधली आंखों में
ठहरे आँसू
बह जायें
दर्द कम हो जाये
सम्भल जाए व्याकुल मन
जुड़ जाये टूटा हुआ दर्पण
खिल उठें
मुर्झाई कलियां
बुझा हुआ चेहरा
तेरी चाहत में समा जाये
और तुम मेरे लिये बस मेरे लिये
सदैव मुस्कराती रहो।
सुरेश भारद्वाज निराश
धौलाधार कलोनी लोअर बडोल
पी.ओ.दाड़ी धर्मशाला हि.प्र
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तेरे बगैर जीने का सलीका पा जाऊं पढें कृपया। आशीष जी आभार।
शानदार…. वाह..
अच्छी अभिलाषा, बधाइयाँ !