जरा सी शाम ढलने दो
लिखेंगे गीत वफाओं के , जरा सी शाम ढलने दो |
लिखेंगे गीत दुआओं के , जरा सी शाम ढलने दो ||
मौसम के रंग कैसे थे , हवा का नूर कैसा था |
लिखेंगे गीत हवाओं के , जरा सी शाम ढलने दो ||
थीं रिमझिम बारिशें कैसी , लिपटी बादलों के संग |
लिखेंगे गीत घटाओं के , जरा सी शाम ढलने दो ||
फूलों की जवानी पे , फ़िदा भंवरे थे किस जानिब |
लिखेंगे गीत फिजाओं के , जरा सी शाम ढलने दो ||
तितलियाँ थीं व भंवरे थे , बहकी सी थी पुरवाई |
लिखेंगे गीत छटाओं के , जरा सी शाम ढलने दो ||
थोडा सा जाम छलक जाए , दर्दे दिल बहक जाए |
लिखेगे गीत सदाओं के , जरा सी शाम ढलने दो ||
थोडा सा सरूर चढ़ने दो , महफिल में नूर चढ़ने दो |
लिखेंगे गीत जफ़ाओं के , जरा सी शाम ढलने दो ||
अशोक दर्द
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बहुत खूब….
जय हो!
Very nice sir ji