बादल जी
डा प्रत्यूष गुलेरी
गड़ गड़ बादल गड़क रहे हैं
बरस रहा है पानी
कभी चमकती बिजली चम-चम
पीला औ’असमानी
अम्बर ने भी आंख झपकते
काली छतरी तानी
बादल बना सिपाही देखो
करता है मनमानी
कहीं नहीं है बूंद टपकता
कहीं बड़ा है दानी
कभी थके ना बरस बरस कर
याद कराए नानी
इतना पानी लाते कैसे
होती है हैरानी
बादल जी सच-सच बतलाना
तुम मितवा तुम जानी।
कीर्ति कुसुम,सरस्वती नगर
पोस्ट दाड़ी-176057
धर्मशाला हिमाचल प्रदेश।
09418121253
शानदार..
बहुत बढ़िया बादल जी
अति सुन्दर रचना जी। बधाई।
Bahut sunder rachana
Dr Kailash Ahluwalia