मेरी बातें अब पुरानी हो गई ..
ना जाने क्यों अब मेरी बातें
तुमको पुरानी लगती है
तुम्हारे मुख से मेरे लिये बातें निकलती नहीं
आज भी दो शब्द सुनने को बेकरार रहता हूँ
ना जाने क्यों तुम रोज़ रूठ जाते है
आज भी मनाने में रातें निकल जाती है
अब नज़र नही आता तुम्हारे दिल में
मेरी वो परछाई जो हर वक्त दिखता था
ना जाने क्यों हर वक्त बहस होती है
कभी प्यार में फुरसत ना था आज सिर्फ बहस
हम घंटो उनके इंतजार में आज भी है
सूखे हुवे पत्तों की तरह बिखरे हुवे
अब बुलाते नही वो उस मोड़ में
जहाँ आशियाना प्यार का बना था
ना जाने क्यों वो गली अब तंग हो गई
जहाँ दो दीवाने प्यार के चला करते थे
इतनी भीड़ के बाद भी वो मेरे पास थी
आज साथ हो कर भी तन्हा तन्हा हूँ
तेरा मेरा मिलना कोई इतीफाक नही
खुदा की रजाबँदि थी
कभी थकते नहीं तुमसे जब बातें होती है
आज भी तेरी तरफ़ क़दम मेरे बढ़ते है
ना जाने क्यों मेरी बातें
अब पुरानी हो गई
राम भगत
सुन्दर पंक्तियां