सितम सह कर में दिलपे अपने तुम्हे प्यार लिखता हूँ
डुबो कर खून में अपने कलम में यार लिखता हूँ
तुमारे दर्द से आबाद है रहता ये दिल मेरा
कभी सुकूँ में दिल का तो कभी लाचार लिखता हूँ
डूबी ना किश्ती मझधार में अपनी तुफानो के
में दिल की किश्ती का तुम्हे खेवनहार लिखता हूँ
वही दिल है वही धड़कन मुहब्बत भी वही अपनी
में अपनी धड़कनों का तुम्हें पहरेदार लिखता हूँ
तिरी यादें सहारा है मिरी इस ज़िन्दगी का अब
बिना तेरे में अपनी ज़िन्दगी दुश्वार लिखता हूँ
करूँ किसपे यकीं मुकर गया महबूब मेरा जब
मुहब्बत में इसे अपनी में अब भी हार लिखता हूँ
( लक्ष्मण दावानी )<