ग़ज़ल
ज़िंदगी को हमने घुट-घुट कर जिया ।
तेरेदिये गम को ज़ाम समझ कर पिया ।।
तेरी खुशी की खातिर ज़हाँ मे बुरे वने ।
चाहतो को दबा कर साथ तेरा दिया ।।
बक्त के साथ-साथ राहें बदल ली तूने ।
न जाने कब का तूने यूं बदला लिया ।।
बता देते तेरी बेबफाई हम भी सबको ।
पर दिल ने ऐसा कभी करने नहीं दिया ।।
घर फूंक तमाशा कोन देखता है आज ।
मुहब्बत की खातिर हमने ऐसा भी किया ।।
गुमनाम होकर जी लेते ज़िंदगी ज़हां में ।
तूने “दीक्षित” से यह हक भी छीन लिया ।।
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