ग़ज़ल
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अज्ज पिच्छैं दिक्खया सब नी बरोबर निकल़या।
जीण लगदा था खरा पर इक्क ठोकर निकल़या।।
बचपना था दो धियाड़े मौज लुट्टी थी मती।
बापुए दा माल सारा खेल पल भर निकल़या।।
मस्टरैणी छैल़ बाँकी छेड़दा था छोह्रियाँ।
छैल़ लगदा था छल़ैपा भूत बांदर निकल़या।।
लाड़िया दे नाज़ नखरे नी चुकोंदे भाउआ।
घर बणा दा जेल टल़दा दिक्ख दफ्तर निकल़या।।
खोत्तयाँ साँही ढुआयाॅ माल पिट्ठी ठोकदी।
पूँह्जियाँ अक्खीं भरूह्ड़ैं नीर झरझर निकल़या।।
भोल़या तीराँ चलाई गुज्जया क्या खट्टया?
हसरताँ दिक्खी मुआ सै: बाॅस डींगर निकल़या।।
जुल्म कित्ता था बड़ा क्या जीण खात्तर जोद्धया।
तीर छड्डे थे मते पर खुह्न्नड़ा फर निकल़या।।
आस बह्न्नी जाण पिच्छैं समझया भगुआन था।
*”सै चलित्तरबाज न्हेंरे दा समुन्दर निकळेेया”*
रोज़ रात्ती सुपणयाँ दी लीक लम्मी चल्लदी।
ख्वाब खोराँ बिच्च मोआ जीण सुंदर निकल़या।।
नेतयाँ खाह्दी मलैई देस रज्जी लुट्टया।
भुक्खड़ा फिरदा दुआई देण वोटर निकल़या।।
छैल़ लोकाँ दे घमण्डे तोड़दा तौल़ा मता।
भूत सौग्गी ले बरात्ती दिक्ख शंकर निकल़या।।
सोचणा ऐ क्या “नवीना” जिंद लगदी कैंह् बुरी।
जानवर था आदमी जेह्ड़ा धुरंधर निकल़या।।
नवीन शर्मा “नवीन”
गुलेर, काँगड़ा (हि०प्र०)
१७६०३३
मो०:9780958743
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