पानी के लिए वलिदान हुई थी रानी सुनयना
हिमाचल की धरती देवी देवताओं की धरती है यंहा हर मंदिर या मेले के साथ जुड़ी कोई न कोई कहानी आपको सुनने को मिलेगी। आज भारत का खजाना में कैलाश मन्हास जी की इस रिपोर्ट में पढ़िए जिला चम्बा की स्थापना में अहम भूमिका निभाने वाली माता सुनयना यानी सूही माता मेले की ये कहानी
चारों ओर से ऊंची पहाड़ियों से घिरा चंबा हिमाचल प्रदेश का एक नगर है जो अपने रमणीय मंदिरों और हैंडीक्राफ्ट के लिए विख्यात है। रावी नदी के किनारे 996 मीटर की ऊंचाई पर स्थित चंबा पहाड़ी राजाओं की प्राचीन राजधानी थी। चंबा को राजा साहिल वर्मन ने 920 ई. में स्थापित किया था।
इस नगर का नाम उन्होंने अपनी प्रिय पुत्री चंपावती के नाम पर रखा।
चंबा ने अपनी अनछुई प्राचीन संस्कृति और विरासत को अब तक संजो कर रखा है। वैशाख महीने में चंबा में एक विशेष मेले का आय़ोजन किया जाता है जिसे सुही मेला कहा जाता है। यह मेला रानी सुनयना की याद में आयोजित किया जाता है। कहा जाता है कि छठी शताब्दी में चंबा की रानी सुनयना ने प्रजा की प्यास बुझाने की खातिर जमीन में दफन हो गई थी।
पढ़िए सबसे अधिक पसंद किए जाने वाले लेख
क्या है रानी सुनयना की कहानी
लोक कथन के अनुसार चंबा की रानी ने नगर में पानी आने के लिए अपना बलिदान दिया था। कहते हैं राजा ने नगर तो बसा लिया, पर चंबा में पीने के लिए अच्छे पानी की कमी बनी रही। एक रात राजा को स्वप्न आया कि यदि स्वयं रानी या अपने पुत्र की बलि कूहल के निवास स्थान पर दें तो नगर में पानी आ जाएगा। फिर रानी सुनयना को ग्राम बजोटा में ले जाया गया। रानी हार शृंगार कर वहां समाधिस्थ हुईं और कहा कि चैत्र मास में उनकी स्मृति में मेला लगाया जाए। रानी के समाधि लेते ही तुरंत कूहल में पानी आ गया।
रानी के बलिदान का स्मारक सूही मंदिर के रूप में बन गया। राजा साहिल वर्मा के पुत्र और राज्य के उत्तराधिकारी ने ताम्रपत्र पर अपनी माता का नाम नैना देवी लिखा है। इस बलिदान के लिए इस शहर की जनता उनके प्रति हृदय से कृतज्ञता प्रकट करती है और सूही मेले को उनकी स्मृति में बड़े धूम-धाम से मनाती है।
पहले यह मेला 15 चैत्र से मासांत तक लगता था, पर अब इसकी अवधि सिमट गई है।
ये मेला अधिकतर महिलाओं और लड़कियों के लिए ही प्रसिद्ध माना जाता है।
इस अवसर पर गाया जाने वाला सुकरात का गीत इतना मार्मिक है कि सुनकर आंखें भर आती हैं।
मेले के आखिरी दिन रानी की पालकी मंदिर से आदर सहित नीचे लाई जाती है। उस समय इस शहर की सारी जनता पालकी के साथ होती है और हवा में तैरते गीत के सुर मन को भिगो देते हैं।
गुड़क चमक भाइया मेघा हो, रानी चंबयाली रे देसा हो
किहां गुड़कां किहां चम्मकां हो, अम्बर भरोरा घने तारे हो
कुतुए दी आई काली बदली हो, कुतुए दा बरसया मेघा हो
छाती दी आई काली बदली हो नैना दा बरसया मेघा हो
गीत चलता रहता है और सभी लोग पालकी को राजमहल तक पहुंचा कर वापस हो लेते हैं।
कैलाश मन्हास
बन्नी चुवाड़ी जिला चम्बा
पर्यटन मामलो के जानकार हैं।