शराफत का फल (लघुकथा)
मदन शाम को अपने घर वापिस आ रहा था। रास्ते में उसे एक खच्चर वाला व्यक्ति मिला ।उसकी दो खच्चरें थी। एक खच्चर खाली थी जबकि दूसरी पर दो खच्चरों का बोझ लदा था। खाली खच्चर मस्त होकर आगे-आगे चल रही थी ।जबकि दूसरी खच्चर बेचारी घिसटते हुए रास्ता तय कर रही थी। मदन ने उनके मालिक से पूछ ही लिया -“भाई यह क्या? एक खच्चर खाली और दूसरी पर दो खच्चरों का बोझ इकट्ठे ?” वह बोला- “बाबूजी यह जो अगली खच्चर है बहुत चंदरी है छट्ट को जानबूझकर गिरा देती है। रास्ते में यह छट्ट को दो बार गिरा चुकी है ।और जब दोबारा अकेले मैं लादने लगता हूं तो यह छट्ट को लादने ही नहीं देती। इसलिए मैंने इसकी छट्ट दूसरी पर लादी है। यह बेचारी बहुत शरीफ है। कभी लात तक नहीं उठाती ।बच्चा भी इसे लाद व उतार सकता है। दो का बोझ भी लाद दो तो भी घिसटती हुई पहुंचा ही देती है। मदन के मस्तिष्क में कभी अपने आवारा भाई का चेहरा तो कभी अपना चेहरा घूम रहा था । उसे अपने और उस दो का बोझ लादे खच्चर में समानता दिखने लगी थी ।खच्चरों के मालिक में उसे अपने बाबूजी का चेहरा दिख रहा था।
अशोक दर्द
गांव घट डाकघर शेरपुर तहसील डलहौजी जिला चंबा हिमाचल प्रदेश176306
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