आज हर कोई राजनीति का शिकार है
एक सुखी है राजनेता, जनता बीमार है
पहुंच वाला तो पहुंचा है नौकरशाही पर
हुनर वाला युवा तो अभी बेरोजगार है।
ऑफिस जाओ नेताओं से पहचान बताओ
चुटकी भर पल में अपना काम करवाओ
मैं भीड़ का हिस्सा हूं, अजनबी हूं उनसे
मेरे से कई लाईनों मे लगने को लाचार है।
जब-जब भी दोबारा फिर से चुनावी दौर आया
नेता मेरे सामने हाथ जोड़, पैर पकड़ गिड़गिड़ाया
मेरा ख्याल रखना, मुझे वोट करना, सपोर्ट करना
इसमें ही आपका मेरे लिए सबसे बड़ा उपकार है।
जीत हुई भूला मुझे, कौन हो तुम कहां से आए
आज मेरे पास वक्त नहीं, क्या परेशानी लेकर आए
बाद में आने… सुना नहीं… ए… तेरे को बोला… जा
फिर मिलती नेताओं से रविन्द्र ऐसी हमें दुत्कार है।
बहुत अच्छे….
आपका हार्दिक आभार जी
संजीव सूद जी प्रतिक्रिया के लिए आपका हार्दिक आभार।
बहल जी रचना को स्थान देने के लिए आपका हार्दिक आभार।
super se b uper
यह सच्चाई है