पूर्व और पश्चिम
पतित हुआ जो भूला पूर्व
भौतिकता में मस्त हुआ।
चढ़ता गया पूर्व में सूरज
पश्चिम पहुंचा अस्त हुआ।।
खून के रिश्ते सब ठुकराए
घर से भी बेदखल हुआ।
माटी का न मोल चुकाया
गैर के गुलशन मस्त हुआ।।
देवभूमि सम मातृभूमि यह
हुए सभी अवतार यहाँ।
आध्यात्म को भूला पश्चिम
बंधुजन से त्रस्त हुआ।।
ऊँचा उठता वही वृक्ष है
जड़ जिसकी गहराई में
पेड़ पपीता सम् मानव क्या
पवनवेग जो पस्त हुआ।।
संस्कार संचित कर रख ले
धन बल से भी उत्तम है।
जन्मभूमि यह स्वर्गतुल्य है
पोषण इसके हस्त हुआ।।
पूर्व में चहुँ सकल शान्ति है
परम् अशान्ति पश्चिम में।
महल बना था धन वैभव का
पल भर में ही ध्वस्त हुआ।।
अपना तज औरों को थामा
किंकर्तव्यविमूढ़ हुआ।
जिया श्वान सा जीवन उसने
यहाँ भ्रष्ट वहाँ नष्ट हुआ।।
स्वरचित मौलिक
कुलभूषण व्यास
शिमला 9459360564