खुद को खुद से आत्मसात करवाता है योग
21 जून 2017 को तीसरा अंतरार्ष्ट्रीय योग दिवस पूरे विश्व मे मनाया जा रहा है और लोगो में योग के प्रति जो उत्सुकता है उससे ये साफ नजर आ रहा है कि भारत की ये प्राचीन विरासत अब अब भारत में ही नही बल्कि विश्व भर में फैल चुकी है। आज की इस भागम भाग भरी जिंदगी में हर कोई खुद को तनाव मुक्त रखना चाहता है ऐसे में योग सबसे बेहतर साधन है जिससे विचारों में सकारात्मकता लाई जा सकती है ।यही कारण है कि योग आज हर किसी के बीच मे प्रसिद्ध हो रहा है। और हर कोई योग को जानना चाहता है।
‘योग’ ये मात्र एक शब्द नही बल्कि कई शब्दों और विचारों को अपने अंदर समेटने का एक जरिया है।योग कोई ऐसा विषय भी नही की उसे विचारों में पिरोया जा सके। योग तो एक क्रिया है जो निरन्तर इस जगत को चलायमान बनाये हुए है। योग की शरुआत कंहा से हुई इसका कोई ठोस जवाब किसी के पास नही है बस ये कहा जा सकता है कि जब से धरती पर जीवन संभव हुआ है सम्भवतः वही योग की शुरुआत हुई होगी। हिन्दू दर्शन में योग को बहुत उच्च स्थान दिया गया है। योग हमारी भारतीय संस्कृति की प्राचीनतम पहचान है। संसार की प्रथम पुस्तक ऋग्वेद में कई स्थानों पर यौगिक क्रियाओं के विषय में उल्लेख मिलता है।भगवान शंकर के बाद वैदिक ऋषि-मुनियों से ही योग का प्रारम्भ माना जाता है। इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि हमारी प्राचीन संस्कृति कितनी समृद्ध और उन्नत रही है। भारत ने दुनिया को योग से जोड़ा है योग के गूढ़ रहस्यों से संसार को आवगत करवाया हमारी महान ऋषि मुनियों की प्राचीन कला को न सिर्फ विश्व ने जाना बल्कि अब उसे अपने अंदर आत्मसात भी किया जा रहा है। योग किसी भी धर्म से ऊपर है, योग तो जीने की एक कला है , ये चेतना को आत्मा से और आत्मा की परमात्मा से जोड़ने का एक मूल मंत्र है क्योंकि ‘योग’ शब्द का अर्थ है ‘जोड़’ यानी योग को कोई बहुत सरल शब्दों में समझना चाहे तो हम ये कह सकते हैं कि योग सिर्फ जोड़ना सिखाता है। ये जोड़ है इंसान का समाज से ,समाज का समाज से और राष्ट्र का राष्ट्र से। योग आज जिस तरह पूरे विश्व मे प्रसिद्ध हो रहा है इससे ये साफ जाहिर है कि योग अपने शब्द के अनुरूप ही देश विदेश की सीमाओं को लांघता हुआ एक राष्ट्र को दुसरे राष्ट्र से जोड़ने का अदभुत और प्रशंसनीय कार्य कर रहा है। योग खुद को खुद से आत्मसात करने की एक सुनियोजित क्रिया है। सबसे पहले ये जानना आवश्यक है कि योग क्या है?
योग शब्द संस्कृत धातु ‘युज’ से निकला है, जिसका मतलब है व्यक्तिगत चेतना या आत्मा का सार्वभौमिक चेतना या रूह से मिलन। योग, भारतीय ज्ञान की पांच हजार वर्ष पुरानी शैली है । हालांकि कई लोग योग को केवल शारीरिक व्यायाम ही मानते हैं, और श्वास लेने के जटिल तरीके अपनाते हैं। यह वास्तव में केवल मनुष्य के मन और आत्मा की अनंत क्षमता का खुलासा करने वाले इस गहन विज्ञान के सबसे सतही पहलू हैं। योग विज्ञान में जीवन शैली का पूर्ण सार आत्मसात किया गया है| योग एक ऐसी क्रिया है जो वैज्ञानिक ढंग से अध्यात्म को समझाती है।
यह भावनात्मक एकीकरण और रहस्यवादी तत्व का स्पर्श लिए हुए एक आध्यात्मिक ऊंचाई है।
पतंजलि को योग के पिता के रूप में माना जाता है और उनके योग सूत्र पूरी तरह योग के ज्ञान के लिए समर्पित रहे हैं।
योग सूत्र की इस व्याख्या का लक्ष्य योग के सिद्धांत बनाना और योग सूत्र के अभ्यास को और अधिक समझने योग्य व आसान बनाना है। इनमें ध्यान केंद्रित करने के प्रयास की पेशकश की गई है कि क्या एक ‘योग जीवन शैली’ का उपयोग योग के अंतिम लाभों का अनुभव करने के लिए किया जा सकता है|
पतंजली योग दर्शन के अनुसार – ” योगश्चित्तवृत्त निरोधः”
अर्थात् चित्त की वृत्तियों का निरोध ही योग है।
योग धर्म, आस्था और अंधविश्वास से परे एक सीधा विज्ञान है… जीवन जीने की एक कला है योग। योग शब्द के दो अर्थ हैं और दोनों ही महत्वपूर्ण हैं।
हमारे प्राचीन उपनिषदों से लेकर ग्रन्थों तक मे योग को अपने ढंग से परिभाषित किया है। अनेक सकारात्मक ऊर्जा लिये योग का गीता में भी विशेष स्थान है। भगवद गीता के अनुसार –
“सिद्दध्यसिद्दध्यो समोभूत्वा समत्वंयोग उच्चते”
अर्थात् दुःख-सुख, लाभ-अलाभ, शत्रु-मित्र, शीत और उष्ण आदि द्वन्दों में सर्वत्र समभाव रखना योग है।
योग” में विभिन्न किस्म के लागू होने वाले अभ्यासों और तरीकों को शामिल किया गया है।
‘ज्ञान योग’ या दर्शनशास्त्र’भक्ति योग’ या भक्ति-आनंद का पथ’कर्म योग’ या सुखमय कर्म पथ
राजयोग, जिसे आगे आठ भागों में बांटा गया है, को अष्टांग योग भी कहते हैं। राजयोग प्रणाली का आवश्यक मर्म, इन विभिन्न तरीकों को संतुलित और एकीकृत करने के लिए, योग आसन का अभ्यास है।
योग की सुंदरताओं में से, एक खूबी यह भी है कि बुढे या युवा, स्वस्थ या कमजोर सभी के लिए योग का शारीरिक अभ्यास लाभप्रद है और यह सभी को उन्नति की ओर ले जाता है। किसी भी कार्य मे मन, चित और ध्यान से उस कार्य मे सफलता हासिल होती है और योग से भी मन की एकाग्रता बढ़ती है जिससे इंसान किसी कार्य को कुशलता से कर पाता है। कहा भी गया है कि ” योग कार्यसु कौशलम”
अर्थात किसी कार्य को कुशलता से करना ही योग है।
योग हमारे लिए कोई नई क्रिया नही है हम यह तब से कर रहे हैं जब हम एक बच्चे थे। हम हमेशा शिशुओं को पूरे दिन योग के कुछ न कुछ रूप करते पाएंगे। बहुत से लोगों के लिए योग के बहुत से मायने हो सकते हैं। योग के जरिये आपको जीवन की दिशा तय करने में मदद मिलेगी और आप दृढ़ संकल्प बनेंगे। अतः यह कहा जा सकता है कि योग एक जीवन जीने की कला है। आज के इस परिवेश में जब इंसान अपनी दिनचर्या में इस प्रकार व्यस्त है कि उसे किसी भी प्रकार से समय नही मिलता कि अपने आप को स्वस्थ रख सके ऐसे में योग आज व्यक्ति के पास बढ़िया विकल्प साबित हो रहा है। हमारा ये कर्तव्य बनता है कि हम अपनी इस प्राचीन विरासत को आने वाली पीढ़ी तक पंहुचाये। इसे सहज कर रखें और हमारे पूर्वजों से हमें जो विरासत मिली है इसे जीवन जीने की कला बनाएं। आओ मिलकर योग को अपने जीवन मे उतार कर अपने विचार, व्यवहार को शुद्ध करें और समाज को भी नव चेतना दें ताकि समाज निरोग्य हो। संसार के सब प्राणियों में प्रेम भाव बढ़े और योग के बल पर ही हम “वासुदेव कुटुंबकम” की अपनी विचारधारा को संसार के कोने कोने तक पंहुचा सकते हैं।
आशीष बहल
लेखक और विचारक
चुवाड़ी जिला चम्बा
Nice post sir
Great sir!
Thnx sir aap bhi kripya apni rachanaye bheje
Atti sunder lekh sir…
Thnx sir aap bhi apni rachnaye bhej skte hai
Bhukhe bhajan nahi nahi ho gopala.jab tak oet me Ann rahta hai sabkuchh achha lagata hai.