कंधे पे हल,
हाथ में कुदाल उठाए जब कोई किसान ,
खेत की तरफ जाता है,
किसी योद्धा सा लगता है,
लड़ता है,
कभी सूखे से,
कभी अतिवृष्टि से,
संपूर्ण प्रकृति से ,
हार की सारथी ,
भी,
और जीत की सारथी ,
भी,
प्रकृति होती है,
हाथ रिसते हैं,
बदन और कपडे पसीने से भीगते है,
पसीने से लथपथ शरीर पर धूल जम जाती है,
दुनिया सुस्ताती है तपती धूप में,
किसान को समेटनी पड़ती है,
अपनी फसल उसी धूप में,
किसान की मेहनत,
और,
प्रकृति की कृपा से फसल तैयार होती है,
तब जाकर थाली में,
दाल ,सब्जी और रोटी परोसी जाती है,
क्या कहें,
तब भी कुछ लोगों को किसानों पे हंसी आती है।
नाम बोबीश पाल
गांव शाहिटा डा. कसलादी तह. भुन्तर पिन 175105
जिला कुल्लू हिमाचल प्रदेश
बहुत सुंन्दर रचना पाल जी….बधाई।
सुरेश भारद्वाज निराश
धन्यवाद …..।अच्छी रचना तो नहीं पर एक कोशिश….
पाल जी आप फोटो में अभी विद्यार्थी प्रतीत होते हैं और ,,,,,
किसान जीवन पर इतना गहन चिंतन !!!! वाह बहुत खूब keep it up…dear
सावन
आदरणीय सावन जी विद्यार्थी तो जिंदगी भर रहेंगे….. लेकिन औपचारिक रूप से 2014 में कला स्नातक के पश्चात प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के साथ खेती किसानी में सक्रिय हूँ
गहन चिंतन तो क्या बस कोशिश भर की है आप लोगों के सुझाव आमंत्रित है