रामकृष्ण जैसा होगा
जिगर तक ज़ख़्म लिये हँसा होगा।
ज़रूर वो नबी होगा ईसा होगा।।
कभी ज़ुल्फ़ कभी रूप सावाँरते थे।
तब दरपन था अब शीशा होगा।।
हर रंग में अब वो मिल जाता है।
कितना बारीक उसे पीसा होगा।।
बेसबब हो गयीं अब नेंकियाँ।
सूखा झरना वो जो रीसा होगा।।
तमाम मुल्क़ घूम लौट आना।
सुकून कहीं नहीं ऐसा होगा।।
सोचता हूँ दिन अनिल फ़िरेंगे क्या।
फ़िर कोई रामकृष्ण जैसा होगा।।
पंडित अनिल
रब मिलेगा
बेहिसाब बेसबब मिलेगा।
झोली में बाअदब मिलेगा।।
दिल झुकाले तब मिलेगा।
इस दयार से सब मिलेगा।।
फ़क़ीर कहते हैं सच ही है।
मगर पता नहीं कब मिलेगा।।
माँग लंबी है पूरी भी होगी।
बाक़ी सोच लो जब मिलेगा।।
माँगते माँगते माँगा ही नहीं।
रब माँगने से रब मिलेगा।।
वहाँ एकसार फ़ैसला होगा।
वहाँ नहीं मज़हब मिलेगा।।
पंडित अनिल