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आज फिर अमृत कलश से
”
आज फिर अमृत कलश से
बूँद छलकी है धरा पर ,
आज फिर से मुद्दतों के
बाद हलचल है धरा पर।
आज फिर चहके हुए से
पेड़ पौधे हैं धरा पर ,
नवनवोन्मीलित नयन से
झांकते अंकुर धरा पर।
आज फिर अमृत ०…
आज मनभावन ये पावस
प्रेम रस बरसा रहे हैं,
दग्ध अंगारों सी जलती
ये धरा सरसा रहे हैं ।
आज फिर उम्मीद की एक
रश्मि आई है धरा पर ,
आज फिर अमृत कलश से
बूंद छलकी है धरा पर ।
आज फिर से अन्नदाता
है चमक दृग में समेटे ,
आज फिर बच्चे घरों में
खिलखिलाहट कर रहे हैं।
आज फिर प्यासे हृदय में
आस जागी है धरा पर,
आज फिर अमृत कलश से
बूंद छलकी है धरा पर ।
आज घरवाली कृषक की
नयन में सपने सजाए ,
ऋण से मुक्ति मिल सकेगी
ख्वाब इक दूजे को भाए।
इस बरस प्रिय नेह की
नदियां बहेंगी फिर धरा पर,
आज फिर अमृत कलश से
बूंद छलकी है धरा पर ।
आज फिर से मुद्दतों के
बाद हलचल है धरा पर।।
——- निशा कान्त द्विवेदी
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अतीव सुन्दर, कृषकों में वर्षा ऋतु के आगमन पर आशा का संचार करती रचना।
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सुन्दर सृजन