‘परिवार’
एक स्नेह की सरिता है
उद्गम उसका परिवार,
नित नेह की डुबकी से
मिलता सुख अपरंपार।
मन की शीतलता है
अपनों का ढेरों प्यार,
हर मुश्किल का हल है
दिखता है सुख संसार।
भगवान करे सबको
मिल जाए सुकूं और प्यार।
एक स्नेह ०——-
उस स्नेह की सरिता में
अनमोल खजाने हैं,
पितु मातु बहन भाई
दुर्लभ ये नगीने हैं।
पति-पत्नी से स्नेहिल
मिलता बच्चों का प्यार,
एक स्नेह ०—–
परिवार है मंदिर सा
सब भाव के भूखे हैं,
दुर्भाव न हो मन में
ये कांच सरीखे हैं ।
हर हाल संभाल इसे
सुख शांति का है सागर ।
एक स्नेह ०—–
संस्कार का हो पोषण
नि:स्वार्थ का हो सिंचन,
हो त्यागमयी सेवा
सम्मान का हो चन्दन।
सुख दुःख मिलकर सह लें
हो इतना सभी में प्यार।
एक स्नेह ०——
बदला ये जमाना है
कुछ भाव भी बदले हैं,
पथ प्रगति कहे जो इसे
इंसान वो पगले हैं।
मानव भावों से है
जिससे चलता संसार।
एक स्नेह ०—–
—— निशा कान्त द्विवेदी
शिक्षक, केन्द्रीय विद्यालय
कर्म भूमि – मुजफ्फरपुर बिहार (वर्तमान)
जन्मस्थान – इलाहाबाद उत्तर प्रदेश
चल दूरभाष ( mob.)- 9452166404
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