एक ताजा ग़ज़ल आप सब की नजर
ग़ज़ल
दर्दे-दिल ये ग़म तेरा सीने में न पल जाये
मोम तेरे ख्वाबों का आब में न ढल जाये
दे रहीं सदा हमको बाँकपन की वो बातें
बेखुदी की ये बाज़ी फिर न हमको छल जाये
रात की ये ख़ामोशी और दिन का सूनापन
डरते हैं न आलम ये बेबसी में जल जाये
ज़िन्दगी की राहें हैं एक तनहा वादी में
क़ाफ़िला ये साँसों का इनमें ही निकल जाये
आँसुओं की ज़द जाने कैसे रंग लायेगी
मौज यादों की शायद फिर-से ही मचल जाये
‘सारथी’ है वो मंज़र चैन है न नींदें हैं
रौनक़ों की ये महफ़िल बेबसी में ढल जाये.
मोनिका शर्मा सारथी