ग़ज़ल
भूल तहज़ीब वो गया शायद
जिद में अपना रहा अड़ा शायद
बोल पागल दिया सभी को जब
कुछ न कहने को रह गया शायद
इसलिये वो ख़ामोश बैठा है
सच को कहने से है डरा शायद
अब के गद्दी न छिन ही ये जाये
ये उसे डर सता रहा शायद
मुश्कुराहट है उसके चहरे पर
सब को उल्लू रहा बना शायद
लुट गया हर कोई यहाँ देखो
रहनुमा ने दिया दगा शायद
आज भी है किसान मुशिकल में
मिल न पाया मुआवजा शायद
शर्म आज़म उसे नहीं आती
हो गया है वो बेहया शायद
आज़म सावन खान