सम्मान की गरिमा को गिराते जा रहे हैं,
सच्चाई से आज नजरें चुराते जा रहे हैं।
ज़मीनी स्तर वालों की कद्र नहीं रही है,
हवा में रहने वालों को बुलाते जा रहे हैं।
बस ये भेड़चाल शुरू कर दी है सभी ने,
झूठी उपलब्धियाँ हम गिनाते जा रहे हैं।
तू मुझे सम्मानित कर, मैं तुझे कर दूँगा,
हम आजकल यही रस्म निभाते जा रहे हैं।
लोगों को लत लग गयी सम्मान बाँटने की,
हर महीने वो कार्यक्रम करवाते जा रहे हैं।
होकर उनसे सम्मानित कुछ लोग यहाँ पर,
हर रोज गीत उस सम्मान के गाते जा रहे हैं।
मिलकर कुछ जुनूनियों ने बदलाव की सोची,
बनाकर संस्था लोगों को समझाते जा रहे हैं।
“विलक्षणा एक सार्थक पहल समिति” वाले,
लोगों की सोच में बदलाव अब लाते जा रहे हैं।
देखो “सुलक्षणा” ने चुना असली हकदारों को,
इसीलिए कुछ लोग ऊँगली उठाते जा रहे हैं।
©® डॉ सुलक्षणा
मोहब्बत को मेरी वो नादानी कह गया,
आँखों से बहते दर्द को पानी कह गया।
उसकी एक आह पर निकलती थी जान,
आज भरी महफ़िल में बेगानी कह गया।
जब पूछा क्या था वो, जब साथ साथ थे,
संग बिताये लम्हों को कहानी कह गया।
मैं ही पागल थी जो टूटकर चाहती थी,
मुझे वो अपनी पगली दीवानी कह गया।
पूछी खता जो मैंने मेरी उस जालिम से,
मुस्कुरा कर समझा कर रानी कह गया।
टूट कर बिखर गयी होती मैं कब की यहाँ,
पर जाते हुए अपनी जिंदगानी कह गया।
जिंदगानी कह उम्र भर का इंतजार दे गया,
तड़प को मोहब्बत की निशानी कह गया।
सुलक्षणा लिखती है अपने दर्द ऐ दिल को,
तेरी यादों में है जिंदगी बितानी कह गया।
©® डॉ सुलक्षणा अहलावत