क्या हर्ज़ है
तेरी यादों को साथ ले कर चलूं
तो क्या हर्ज़ है
तेरी परछाईं को हम सफ़र बनूं
तो क्या हर्ज़ है
तुझको अपना बना कर रखूं
तो क्या हर्ज़ है
तेरे संग दुनियाँ से नाता तोडु
तो क्या हर्ज़ है
एक तरफ तुम हो और एक तरफ मैं हूँ
बीच की दूरियाँ कम करूँ तो
क्या हर्ज़ है
नफरत की दीवार तोड़ कर
प्यार की दीवार बना दूं तो क्या हर्ज़ है
भीड़ के बीच रह कर प्यार की ताजमहल बना दूं
तो क्या हर्ज़ है
तेरी यादों …
तेरी परछाईं ..
राम भगत किन्नौर