तूँ जो चाहे
तूँ जो चाहे अगर चाहे क़तरा कर दे समंदर को।
तूँ जो चाहे बदल दे झील झरने में रेगिस्ताँ को।।
तेरा हद जानना मुश्किल है नामुमकिन है रहबरा।
तूँ जो चाहे बहारों को ख़िज़ाँ ख़िज़ाँ कर ने बहाराँ को।।
फ़ना तुझमे उठे है ज़िंदगी की हर लहर तुझसे।
जो चाहे फूस का कर दे सहारा तूँ बे सहारा को।।
तेरे है इख़्तियारी में जो चाहे चाँद तप जाये।
जो चाहे आग कर दे आब आबगीने शरारा को।।
यही है इल्तिज़ा रखना अनिल दिल को सुकूँ करके।
जो चाहे तूँ नवाजे या करे गर्दिश सितारा को।।
पंडित अनिल
तूँ जो चाहे – 2
तूँ जिसे चाहे उसे मशहूर कर दे।
श्याह रातों को भी तूँ नूर कर दे।।
तूँ बदल दे धूल को भी पर्वतों में।
तूँ जो चाहे पर्वतों को चूर कर दे।।
तूँ बना दे हीरे को शीशे का टुकड़ा।
तूँ जो चाहे शीशा कोहिनूर कर दे।।
जो रहे राज़ी रजा में तेरी उसकी।
ग़र्दिशें ग़म को जेहन से दूर कर दे।।
तूँ नवाजे तूँ गिरा दे मेरे रहबरा।
तूँ जो चाहे हाक़िम हुज़ूर कर दे।।
जर्द पत्तों की तरह हैं हम अनिल।
तूँ जो चाहे तो हरा भरपूर कर दे।।
पंडित अनिल