ग़ज़ल
212 212 212 212
मेरे लव पे सदा ही तेरा नाम हो
पूजना ही तुझे बस मेरा काम हो
मंज़िलें तो मुझे हैं मिली ना कभी
मेरे दिल में तो वसता तेरा नाम हो
अपने दिल में छुपा लूँ अगर मैं तुझे
याद आना तेरा फिर सुवह शाम हो
तेरे सपने जो मेरे ही दिल में रहें
जिन्दा रहना ही बस मेरा अंजाम हो
जाम पर जाम मुझको पिलाते रहो
तेरे आगोश में ही मेरी शाम हो
कितनी प्यारी हैं आँखें मेरे यार की
कत्ल मेरे का तुझ पर न इल्ज़ाम हो
मैखाने में तेरे जो मिलूँ मैं तुझे
हो नशा बस तेरा होंठों का जाम हो
कैसे पाऊँ तुझे मै नहीं जानता
इश्क मेरे का आखिर तो कुछ दाम हो
होश खो दूँ मै अपनी तेरी याद में
आँख मेरी खुले तो तेरा धाम हो
पत्थरों का शहर रास आया नहीं
नींद टूटे तो देखूँ मेरा गांव हो
चांद छुपने लगे जव छा जाये घटा
प्यासी आँखें मेरी सुरमयी शाम हो
तेरे घर के ही बाहर मैं तकता रहूँ
खिडकी तेरी खुले तो मेरा काम हो
तुम जो भी चाहो मन्ज़ूर है “निराश”
नाम तेरा कभी भी न वदनाम हो
सुरेश भारद्वाज “निराश”
धौलाधार कलोनी लोअर बड़ोल
पीओ दाड़ी (धर्मशाला) हिप्र 176057