ग़ज़ल
गैरों से दिल लगाना तू छोड़ दे
अपनों से दूर जाना तू छोड़ दे
दिल तेरा तो अमानत किसी की है
याद रखले भुलाना तू छोड़़ दे
चाँद है देखता रोज ही तुम्हें
चाँदनी में नहाना तू छोड़ दे
तेरी चाहत है मेरी दिवानगी
आँखों से मुस्कराना तू छोड़ दे
रास्ता ये तेरा है मेरा भी तो
साथ अब मेरे आना तू छोड़ दे
लोग कहते हैं कुछ और करते कुछ
दिल यूँ अपना जलाना तू छोड़ दे
अब नहीं है रहा तुझसे वास्ता
दिल मेरा अब चुराना तू छोड़ दे
मुझसे मिलना न चाहो तो मत मिलो
मेरे घर का ठिकाना तू छोड़ दे
कर रही है ये घायल तेरी नजर
होंठ अब यूँ दवाना तू छोड़ दे
भूल जाना तुझे वस मेरे नहीं
बारहा याद आना तू छोड़ दे
सुरेश भारद्वाज निराश
धर्मशाला हिप्र