हम जीवनशाला में गढ़ते,
जीवन की भाषा को पढ़ते।
आशा की नौका पर बैठे,
ईश्वर के साँचे में मढ़ते।।
प्रतिपल बाधाओं से लड़ते,
फिर भी रहते आगे बढ़ते।
नूतन लय की अभिलाषा में,
अभिनव सोपानों पर चढ़ते।।
Dr. Meena kumari
कविता / डॉ मीना कुमारी

हम जीवनशाला में गढ़ते,
जीवन की भाषा को पढ़ते।
आशा की नौका पर बैठे,
ईश्वर के साँचे में मढ़ते।।
प्रतिपल बाधाओं से लड़ते,
फिर भी रहते आगे बढ़ते।
नूतन लय की अभिलाषा में,
अभिनव सोपानों पर चढ़ते।।
Dr. Meena kumari
बहुत सुंदर