दिल भरा नहीं है ”
ज़मीर ज़िंदा है प्यारे मरा नहीं है ।
ये बात और है दिल भरा नहीं है ।।
आँखें थकीं हैं थक गयीं हैं मगर ।
आँख से जागीरी नशा उतरा नहीं है ।।
हर आदमी दिखता है खोटा ही मुझे ।
लगे है मन मेरा ही खरा नहीं है ।।
तेरे ज़िक्र से ही महक जाती है फ़ज़ाँ ।
दिल तो अपना ही उर्वरा नहीं है ।।
गुमान यौवन पे ऐसा है अनिल ।
लगे है अपनें लिये तो जरा नहीं है ।।
पं अनिल
अहमदनगर महाराष्ट्र
दोस्तों के नाम ”
दोस्ती में दोस्त मेरे चाल कैसा।
मुस्कुरा कर पूछते है हाल कैसा।।
आसमाँ गर छू रहा है दोस्त अपना।
खींचने को दोस्ती में जाल कैसा।।
दोस्ती में जाँ निसार लाजमी है।
शक सुबहा शिकायतें सवाल कैसा।।
कुछ दिनों में बीत जायेगा ये सतरह।
पूछते हैं होगा अठरह साल कैसा।।
दोस्तों की हिम्मतें गर एक हो।
नज़र कोई लगा दे मजाल कैसा।।
दोस्त हैं कपड़े नहीं जो बदल डालूँ।
दोस्त हैं गर साथ तो जंजाल कैसा।।
ख़्याल तड़पाये नहीँ जो दोस्त मेरे।
दिल में है वो दोस्त मेरे ख़याल कैसा।।
पं अनिल