कलम बोलती है।।
खाक हैं वोह हुये जिनकी ऐसी वाणी,
वदजुवान ही वोलते कर्म जिनके अच्छे नहीं होते।।
देशभक्त की तलवार और कलम,
रूकती नहीं कभी नेता या सड़क छाप के रोके।।
खसियानी विल्ली खम्भा नोचे,
हराये तभी थे जब लोगों को लगे वचन फोके।।
सब रक्षक मैदान निहारते रहेंगे,
आप मारते रहो हर गेंद पर चौके ही चौके।।
कहते टूट गये वोह अक्कड़ में थे जो,
लग जाये घुन उन्हें गिर कर देते मौके ही मौके।।
यही मंशा उस कुमति की रही होगी,
जिसको खुद के काहरों पर नहीं रहे होंगे भरोसे।।
सत्ता नशा बुरा होता है अक्सर सुना है,
लेकिन सुना नहीं यह ,सफेद रंग में भी हैं खोते।।
नकारते रहो इन्हें अहमियत न दो,
हालात पर नजर रखिये सब सिखा देंगे इन्हें पोते।।
जग्गू नोरिया